बिहार दर्पण

बिहार दर्शन के तीन पथ दर्पण है जो कुछ इस प्रकार है

कीकट दर्पण, मगध दर्पण, बिहार दर्पण

तो आइए शुरू करत है और जाने बिहार को अंतिम दर्पण से,

बिहार दर्पण से

हालांकि, जब आप प्राचीन भारत का इतिहास पढ़ेंगे तो ये दोनों नाम आपको खूब देखने और पढ़ने को मिलेंगे तब न तो 'विहार' को 'बिहार' कहा जाता था और ना ही 'पाटलिपुत्र' को 'पटना'। कई बार सोच लिया जाता है कि आखिर नाम में क्या रखा है? मगर जन्म के समय से मिला नाम ही आगे चल कर पहचान बनती है, जिससे वो आजीवन बंधा रहता है। आज के हिसाब से देखें तो उसे ही कथित तौर पर 'ब्रांड' कह दिया जाता है। इसलिए नाम बड़ा ही अहम चीज है। इसे हल्के में लेने की कोशिश न करें। ऐसे में 'विहार' और 'पाटलिपुत्र' के 'बिहार' और 'पटना' बनने की कहानी भी उतार-चढ़ाव से भरी है।

'विहार' से 'बिहार' तक की सफर

मगध से 'विहार' और फिर 'बिहार' की सफर भी कम दिलचस्प नहीं है। भारत के इतिहास में मगध की तो खूब चर्चा है, मगर 'विहार' कहां से आया? फिर ये 'बिहार' कैसे हो गया? मौर्य वंश के शासनकाल में मगध और पाटलिपुत्र भारत की सत्ता का केंद्र बन गया। अफगानिस्तान से लेकर बंगाल की खाड़ी तक साम्राज्य फैला हुआ था। पाटलिपुत्र से इसे कंट्रोल किया जाता था। अशोक (268-232 ईसा पूर्व) के शासनकाल में 'विहार' शब्द का जिक्र मिलता है। ऐसे में ये जानना जरूर हो जाता है कि 'विहार' क्या है? 'विहार' शब्द का अर्थ 'मठ' होता है। चूंकि अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिए थे तो इसके प्रचार-प्रसार करने वालों को बौद्ध भिक्षु कहा गया। उनके रूकने और प्रार्थना के स्थान को 'विहार' के नाम से जाना गया। अशोक के शासन काल में मगध के कई हिस्सों में 'विहार' बनवाए गए। धीरे-धीरे मगध साम्राज्य का पतन हुआ और तुर्कों ने आक्रमण किया। उनको 'विहार' का उच्चारण करने में दिक्कत होती थी तो उन्होंने 'बिहार' कहना शुरू कर दिया। कभी मगध क नाम से पहचान रखनेवाला साम्राज्य 'विहार' से आधुनिक 'बिहार' बन गया।

खिलजी से बदला मगध का इतिहास

वैसे, आधुनिक बिहार में तुर्क सता की स्थापना का श्रेय इख्तियारदीन मोहम्मद इब्ने बख्तियार खिलजी को दिया जाता है। वो बनारस और अवध क्षेत्र के सेनापति मलिक हसमुद्दीन का सहायक था। 12वीं शताब्दी के आखिर में कर्मनाशा नदी के पूर्वी छोर (आधुनिक बिहार) पर हमला किया। तब यहां सेन वंश के लक्ष्मण सेन और पाल वंश के इंद्रधनु पाल शासक थे। पटना से सटे मनेर को इख्तियारदीन मोहम्मद इब्ने बख्तियार खिलजी ने अपना ठिकाना बनाया। 1198-1204 ईस्वी के बीच मगध और आसपास के शासकों ने युद्ध में आत्मसमर्पण कर दिया। यहीं से 'मगध', 'विहार' और 'पाटलिपुत्र' शब्द पर प्रहार शुरू हुए।

'पाटलिपुत्र' कैसे बन गया 'पटना'?

किसी भी देश, प्रदेश, संस्कृति और कला का 'स्वर्ण युग' होता है। मतलब उस वक्त वो अपनी महत्ता की पराकाष्ठा पर हो। भारतवर्ष के इतिहास में गुप्तकाल को स्वर्ण युग माना जाता है, जो तीसरी से छठी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच रहा। तब भी 'बिहार' की उत्पति नहीं हुई थी। इसे 'मगध' और 'पाटलिपुत्र' के नाम से जाना गया। तब मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृह (आधुनिक नालंदा जिले का राजगीर) हुआ करती थी। बाद में हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु (492-460 ईसा पूर्व) ने अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र में स्थापित की। 16वीं शताब्दी में अंग्रेजों की एंट्री की हुई तो 'पाटलिपुत्र' से 'पत्तन' होते हुए आज का आधुनिक 'पटना' नाम पड़ा।

आधुनिक बिहार और पटना को जानिए

अब सवाल उठता है कि आधुनिक बिहार और पटना कहां से आया? 16वीं शताब्दी में अंग्रेजों की भारत में एंट्री हुई। 17वीं शताब्दी में कारोबार अब शासन का शक्ल लेने लगा। इस दरम्यान 22 अक्टूबर 1764 में ईस्ट इंडिया कंपनी और मुगल-नवाबों के बीच कर्मनाशा नदी के पास बक्सर में युद्ध हुआ था। ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत हुई। बंगाल (आधुनिक बांग्लादेश भी शामिल) और बिहार (झारखंड और उड़ीसा) पूरी तरह अंग्रेजों के कब्जे में आ गया। दोनों को मिलाकर ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल प्रेसीडेंसी की स्थापना की। बाद में 22 मार्च 1912 को बंगाल से बिहार को अलग कर दिया। बिहार नाम से नए राज्य का गठन किया गया। इसकी राजधानी पटना बना। आगे के दिनों में 1 अप्रैल 1935 में बिहार से अलग होकर उड़िसा (ओडिशा) और 15 नवंबर 2000 में झारखंड नाम से नए राज्य बने। आधुनिक बिहार 111 साल का हो गया। हर साल 22 मार्च को बिहार दिवस के तौर राज्य सरकार एक महोत्सव का आयोजन करती है। इस दौरान संस्कृति, कला और गौरव पूर्ण इतिहास को प्रदर्शित किया जाता है।