Kikat Darpan
कीकट दर्पण
नमस्कार
बिहार दर्शन के तीन पथ दर्पण है जो कुछ इस प्रकार है
कीकट दर्पण, मगध दर्पण, बिहार दर्पण
तो आइए शुरू करते है और जाने बिहार को प्रथम दर्पण से,
कीकट दर्पण से
चरणाद्रि (चुनार) से लेकर गुद्धकुट (गिद्धौर) तक कीकट देश है । मगध उसी के अंतर्गत है । मगध देश का प्राचीन वैदिक नाम कीकट है ।कीकट जिसका अर्थ है पाप का प्रदेश,
जिस समय वैवश्वत मनु का अखंड शासन पूरे विश्व में था उस समय कीकण: मनु के पुत्र प्रियव्रत के वंश में जन्मे एक राजा। वह राजा भरत के उन्नीस पुत्रों में से एक थे।
वह राजा भरत के उन्नीस पुत्रों में से अन्य अठारह पुत्र थे,
कुशवर्मन, लला-वर्त, ब्रह्मावर्त, आर्यावर्त, मलय, भद्रकेतु, सेना, इंद्रस्पृक, विदर्भ, कपि, हरि, अंतरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, अविरहोत्र, द्रमिड़, कैमास। और करभाजना. (भागवत, 5वां स्कंध)
उन्ही राजा कीकण: के द्वारा कीकट प्रदेश की स्थापना की गई जिसका कुछ इस प्रकार उल्लेख मिलता है ।
“चरणाद्रिं समारभ्य गृध्रकूटा-न्तकं शिवे!। तावत् कीकटदेशःस्यात् तदन्तर्मगधोभवेत्शक्तिसङ्कमीक्ते ।।
“चरण पर्वत से लेकर गिद्ध शिखर के अंत तक, हे शिव! अब तक कीकट का देश होगा और उसके भीतर शक्ति का संगम मगध होगा ।
पूर्व ऐतिहासिक काल में कीकट के विभिन्न भागों में आदि मानव रहा करते थे। आदि मानव से जुड़े विभिन्न प्रकार के तात्कालिक साक्ष्य एवं सामग्री प्राप्त हुए हैं। जिन स्थलों से साक्ष्य मिले हैं वे मुंगेर, पटना एवं गया हैं। इनमें सोनपुर, चेचर (वैशाली), मनेर (पटना) उल्लेखनीय हैं।
प्लीस्तोसीन काल के पत्थर के बने सामान और औजार बिहार में विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं। चिरांद एवं सोनपुर (गया) से काले एवं लाल मृदभांड युगीन (हड़प्पा युगीन) अवशेष मिले हैं। हड़प्पा युगीन साक्ष्य ओरियम (भागलपुर), राजगीर एवं वैशाली में भी मिले हैं।
पूर्व ऐतिहासिक बिहार को निम्न युगों द्वारा अध्ययन किया जा सकता है-
पूर्व प्रस्तर युग (10000 ई. पू. से पूर्व)- आरम्भिक प्रस्तर युग के अवशेष हरत, कुल्हाड़ी, चाकू, खुर्पी, रजरप्पा (हजारीबाग पहले बिहार) एवं संजय घाटी (सिंहभूम) में मिले हैं। ये साक्ष्य जेठियन (गया), मुंगेर और नालन्दा जिले में उत्खनन के क्रम में प्राप्त हुए हैं।
मध्यवर्ती प्रस्तर युग (10000 ई. पू. से 4000 ई. पू.)- इसके अवशेष बिहार में मुख्यतः मुंगेर जिले से प्राप्त हुए हैं। इसमें साक्ष्य के रूप में पत्थर के छोटे टुकड़ों से बनी वस्तुएँ तथा तेज धार और नोंक वाले औजार प्राप्त हुए हैं।
नव प्रस्तर युग (4000 ई. पू. से 2500 ई. पू.)- इस काल के ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में पत्थर के बने सूक्ष्म औजार प्राप्त हुए हैं। हड्डियों के बने सामान भी प्राप्त हुए हैं। इस काल के अवशेष उत्तर बिहार में चिरॉद (सारण जिला) और चेचर (वैशाली) से प्राप्त हुए हैं।
ताम्र प्रस्तर युग (2500 ई. पू. से 1000 ई. पू.)- चिरॉद और सोनपुर (गया) से काले एवं लाल मृदभांड को सामान्य तौर पर हड़प्पा की सभ्यता की विशेषता मानी जाती है।
बिहार में इस युग के अवशेष चिरॉद (सारण), चेचर (वैशाली), सोनपुर (गया), मनेर (पटना) से प्राप्त हुए हैं।
उत्खनन से प्राप्त मृदभांड और मिट्टी के बर्तन के टुकड़े से तत्कालीन भौतिक संस्कृति की झलक मिलती है। इस युग में बिहार सांस्कृतिक रूप से विकसित था। मानव ने गुफाओं से बाहर आकर कृषि कार्य की शुरुआत की तथा पशुओं को पालक बनाया। मृदभांड बनाना और उसका खाने पकाने एवं संचय के उद्देश्य से प्रयोग करना भी सीख गया था। ये सभी साक्ष्य को हम प्री ऐरे ऐज बिहार का इतिहास भी कह सकते हैं।